सीमा अपने पति को धमकाते हुए बोली- मान लो कि तुम अंधे हो, तुम अपाहिज हो। ऐसा सोचकर तुम कुछ नहीं बोलना और न ही कमरे से बाहर आना, समझे। जिस तरह से कोरोना पीड़ित रोगी को घर पर ही क्वारंटाइन कर दिया जाता है ठीक उसी तरह तुम्हारी जरूरत का सारा सामान कमरे में ही पहुँचा दिया जाएगा। वैसे भी तुम्हारे जैसे व्यक्ति को किसी चीज की क्या जरूरत है ? तुम पूरे घर की निरमा से धुलाई करके सारे पर्दे और बेडशीट बदल देना, और हाँ, दोपहर का खाना बनाकर बच्चों को खिला देना। मैं बहुत व्यस्त हूँ क्योंकि आज शाम को घर पर ही मेरी किटी पार्टी है। शहर की बड़ी-बड़ी हस्तियां और नामी-गिरामी लोगों की पत्नियां आएंगी।
यह तो मेरा दुर्भाग्य ही था जो न जाने किस मनहूस घड़ी में तुम जैसा निखट्टू मेरे पल्ले पड़ गया। तुम मेरी सोसायटी में एक नौकर की भी हैसियत नहीं रखते हो। तुम्हारी एजूकेशन, हिन्दी मीडियम से केवल आठ पास, वह भी रिश्वत द्वारा बोनस अंक देकर जबरदस्ती पास किए गए हो। सूरत ऐसी की जिसके साथ तुम खड़े हो जाओ उसे कभी नजर ही न लगे। अरे ! पैदा होते ही यदि चुल्लू भर पानी में डूब जाते तो मुझे कम से कम यह दिन तो न देखना पड़ता। तुम्हें स्वीकारना तो मेरी सामाजिक मजबूरी है, वरना मेरे लिये तुम किसी काम के नहीं हो।
अपने पवित्र श्लोकों से मेरा आचमन कराते हुए माननीया श्रीमतीजी मेरे काल कोठरी रूपी कमरे से काले पानी की सजा सुनाकर बाहर निकल गईं। श्रीमतीजी के इस उद्बोधन को मैंने किसी उलेमा द्वारा जारी किए गए फतवे के समान मानते हुए सावधान और मौन रहने का भीष्म संकल्प ले लिया। पत्नी के जाते ही मेरी बांयी आंख ने फड़ककर मौसम विभाग द्वारा समुद्री तट पर आने वाले तूफान की तरह मुझे आगाह किया। मैं पूरी तरह से अपने आपको संभाल भी नहीं पाया था कि मुझे नाल लगे घोड़े की टापों से भी भयंकर,
पत्नी के पद्चापों का जाना-पहचाना हॉरर फिल्म जैसा स्वर सुनाई दिया। मेरा अनुमान चौबीस कैरेट खरे सोने की तरह,
सौ प्रतिशत सही था। कुछ ही क्षणों में वह मेरे सामने चीन की दीवार सी स्थिर होकर और अमेरिका की तरह वीटो पावर का प्रयोग करते हुए कहने लगी- मेरी सहेलियां,
यदि अन्दर आ गयीं तो उन्हें सबसे पहले झुककर गाँव वालों की तरह प्रणाम नहीं,
गुड ईवनिंग मेडम कहना,
समझे। एक बात और ध्यान रहे कि गलती से भी न बताना कि तुम मेरे निखट्टू पति हो। क्योंकि मैंने सबको यही बताया है कि मेरा पति अमिताभ बच्चन की तरह लम्बा,
आमिर खान की तरह स्मार्ट,
सलमान खान की तरह गोरा और अक्षय कुमार की तरह पर्सनाल्टी वाला है। तुम्हारा कारोबार विदेशों तक फैला है। इसलिए अधिकांश समय तुम हांगकांग और दुबई में ही रहते हो।
मैंने वफादार और पालतू टॉमी की तरह पूँछ की जगह सिर हिलाकर मौन स्वीकृति प्रदान करते हुए अपनी गर्दन ठीक उसी प्रकार झुका ली,
जैसे मेरे कुल चालीस किलो के शरीर में से पाँच किलो की गर्दन पर,
पचास किलो का वजन लटका दिया गया हो। ऐसा व्यवहार तो कंस ने भगवान श्रीकृष्ण के साथ भी नहीं किया था। मुझे तो लगने लगा था कि राहू,
केतू और शनि ने,
एक साथ आपस में परामर्श करके,
मुझे चारों ओर से घेरकर,
अपनी-अपनी महादशाएं चालू कर दी हैं और मुझे निहत्था पाकर आक्रमण करके ऑक्टोपस (आठ भुजाओं वाला समुद्री जीव) की तरह जकड़ लिया है। मुझसे अच्छा तो इस घर का नौकर है। सोचते-सोचते मैं बहुत दु:खी हो रहा था। अचानक फ्लाइंग स्कॉट की तरह बिना बताए श्रीमतीजी ने एक बार फिर काल की भांति कमरे में पुन: प्रवेश किया और मेरे ऊपर अपनी गिद्ध दृष्टि डालते हुए वह बोली,
यह क्या !
तुम्हारे चेहरे पर हवाइयां क्यों उड़ रही हैं
? मैं तो केवल तुम्हें ध्यान दिलाने आई हूँ कि कमरे के बाहर नहीं निकलना। मैंने कहा,
जी मालकिन। इतना सुनते ही वह तुरन्त बोली,
वेरी गुड। तुम्हें मात्र दो घंटे इसी तरह से एक्टिंग करना है कहकर वह चली गयी। श्रीमती जी के चेहरे पर समुद्री ज्वार-भाटे की तरह उतार-चढ़ाव और मच्छर सी अय्यारी देखकर मैं समझ गया था कि मेरा पानी का जहाज इन समुद्री लहरों के आगे बेबस है।
अचानक
दीवार घड़ी ने आवाज
के साथ मेरी एकाग्रता को भंग करते हुए घड़ी के पेन्डुलम द्वारा संकेत कर दिया कि अब किटी पार्टी का समय हो गया है,
सतर्क हो जाओ। अगर सही एक्टिंग नहीं कर पाए तो पेन्डुलम की तरह हिला दिए जाओगे। पेन्डुलम तो थोड़ी देर में रूक भी जाता है,
मगर तुम नहीं रूक पाओगे।
घर
के बाहर नयी-नयी कारों से उतरती हुयी महिलाओं ने सभ्यता को खोखला करते हुए अपनी बनावटी
अदाओं के साथ इतराते हुए घर में प्रवेश किया तो मेरा रक्तचाप और धड़कन बढ़ना स्वभाविक
था। जैसे-जैसे सूरज चढ़ता है वैसे-वैसे माइग्रेन का दर्द बढ़ता जाता है ठीक उसी प्रकार
महिलाओं के एकत्रित होते ही सब्जीमंडी की भांति शोरगुल के साथ ही किटी पार्टी रूपी सम्मेलन का शुभारम्भ हो चुका था। पश्चिमी
सभ्यता प्रभावित हर आधुनिक महिला के साथ बच्चों
और पति से अधिक प्रिय एक-एक पप्पी या कुत्ता अवश्य था। मैं दरवाजे की आढ़ से पढ़ी-लिखी असभ्य महिलाओं के इस अभद्र दृश्य को देखकर यह नहीं समझ पा रहा था कि यह किटी पार्टी है या कुत्ता पार्टी। स्लीव लेस,
बिना दुप्पटे और डीप गले के चुस्त वस्त्रों से सुसज्जित पहनावे वाली आधुनिक महिलाएं,
मर्यादा भंग करते हुए समाज में छुपे हुए भेड़ियों को अपनी और आकर्षित कर रही थीं। साथ ही “शीलाजी-
तेरी साड़ी, मेरी साड़ी से सफेद कैसे” सर्फ के इस विज्ञापन की तरह एक-दूसरे को देखकर इतरा रही थीं। सभी ने झूठा मेकअप करके शालीनता की पर्तें चढ़ा रखी थीं,
जो किसी परिचित की मृत्यु होने पर रो भी नहीं सकतीं। क्योंकि उन्हे डर रहता है कि कहीं आंसुओं
से उनके मेकअप की
पर्तें धुलकर वास्तविकता न कह दें। बूढ़ी होने पर भी हमेशा जवान दिखने की होड़ रखने वाली ये आधुनिक बालाएं (बलाएं) किसी के मरने पर सहानुभूति के दो शब्द कहकर खेद व्यक्त भी नहीं कर सकतीं। क्योंकि होठों पर लिपिस्टक की जो पर्त लगी है कहीं वह छूट न जाए। उनके इस जीवन चरित्र को देखकर मैं सोच रहा था कि क्या यही है महिला प्रधान आधुनिक समाज ? जहाँ मर्यादा,
घूंघट के रूप में गायब हो चुकी है और पत्नी को पति से प्यारा कुत्ता है।
सभी का ध्यान आकर्षित करते हुए मिसेज शर्मा बोली,
अरे सीमा, तेरा फर्श तो बहुत शाइनिंग मार रहा है। मिसेज शर्मा को टोकते हुए मिसेज अग्रवाल बोलीं,
अरे केवल फर्श ही नहीं,
चुन्नटें बनाकर पर्दे टांगने का नया ढंग और बेडशीट बिछाने की स्टाइल भी तो देखो। सीमा,
मुझे तो लगता है कि तुम्हारा नौकर पहले किसी फाईव स्टार होटल में काम करता था। श्रीमतीजी ने,
जैसे किसी प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही हों,
यदि नहीं बोलने में जरा सी भी देर कर दी,
तो प्रतियोगिता से बाहर हो जाएंगी,
ऐसा सोचकर तुरन्त ही कहा,
नहीं। नौकर तो मैं अपनी ससुराल से लाई हूँ। बहुत ही सीधा है। कुत्ते की तरह दुम हिलाता है। सुनकर सभी ठहाका लगाकर जोर से हँसने लगीं।
मैं अपने ऊपर होने वाली टिप्पणियों से आहत होकर,
गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या की तरह श्रापित होता जा रहा था। मुझे भगवान राम के रूप में किसी मानवाधिकार आयोग की मदद की आवश्यक्ता थी,
जो मुझे पत्नी के बंधन से मुक्त करा सके। मैं पाकिस्तान में बन्द भारतीय सैनिक की तरह,
पत्नी की कैद से मुक्त होने के असम्भव सपने देख रहा था। इस बार सपनों को छिन्न-भिन्न करते हुए मिसेज तिवारी बोलीं,
अरे सीमा जरा अपना घर तो दिखा। मैं समझ गया कि अब मेरी सीताजी की तरह अग्नि परीक्षा की तैयारी है। मैंने तुरन्त अपने आपको संभाला और नौकर की भूमिका के लिए तैयार हो गया। धीरे-धीरे महिलाओं की फौज मुझ निहत्थे और लाचार सिपाही की ओर बढ़ने लगी। उन्हें देखकर मेरे चेहरे पर,
मृत्यु की सजा पाए अपराधी की तरह डर के हाव-भाव शीत की भांति मस्तिष्क पर स्पष्ट दिखने लगे और श्रीमतीजी की गर्दन गर्व से इस प्रकार ऊँची और सीधी थी कि जैसे डॉक्टर ने गर्दन में ट्रेक्शन लगा दिया हो।
श्रीमती जी द्वारा घर दिखाते समय एक-एक करके सभी महिलाएं मेरे सामने से किसी फौजी अफसर के समान निकलीं और मैं सिपाही सा गुड ईवनिंग मेडम कहकर अपने आत्मसम्मान को सीने पर खाई
गोली की तरह छलनी होता हुआ देखता रहा। कुछ महिलाएं तो मुझपर फब्तियां कसते हुए बोलीं, अरे सीमा! कुछ दिन के लिए ही
सही अपने
इस नौकर को हमारे यहां भी भेज देना कहकर पत्नी सहित सब महिलाएं हंसने लगीं।
दो घंटे बाद जब सभी बालाएं उर्फ बलाएं चली गईं तो, मैंने श्रीमतीजी से ठीक उसी तरह गिड़गिड़ाते हुए कहा, जैसे कोई विकासशील देश विकसित देश के आगे गिड़गिड़ाता है कि मुझे बहुत जोर की भूख लगी है। पेट में चूहे दौड़ रहे हैं। मैं तुम्हारी किटी पार्टी की बची हुई खाद्य सामग्री को प्रसाद समझकर खा लूंगा। मुझे बस आपकी अनुमति चाहिए। मेरा यह सद्विचार सुनकर वह शेरनी की तरह दहाड़कर बोली- पेट में चूहे दौड़ रहे हैं तो चूहे मारने की दवा खाओ। श्रीमतीजी के इस अग्नि वाण से आहत होकर मुझे कवि सुधीर गुप्ता “चक्र” की दो लाईनें याद आती हैं। उन्होंने सही लिखा है कि – “कलियुग की यह रीति सदा चली आई, पति सूखी रोटी को तरसे, पत्नी खाए मलाई”।
मेरे ऊपर अत्याचार लगातार
बढ़ता
ही जा रहा था। मैं भी क्या करता ? मेरा समर्थन तो पशु-पक्षी भी नहीं करते, मानव की तो बात ही अलग है। श्रीमतीजी से विवाह करना उनका नहीं बल्कि मेरा ही दुर्भाग्य था। मैं गाँव की सीधा-सादा इन्सान, भला शहर की लड़की से मेरा क्या मुकाबला। श्रीमतीजी एम० ए० इंग्लिश से टॉपर और मैं धक्का देकर आठ पास। शारीरिक ढाँचा ऐसा कि पड़ोसन मेरा नाम लेकर बच्चों को डराती है। उसी दिन से पड़ोसन के बच्चों को बुरे सपने भी आने लगे हैं और तब से आज तक उसके बच्चों ने मेरे घर की ओर नहीं झाँका। श्रीमतीजी का चेहरा ऐसा कि राष्ट्रपति भवन के मुगलगार्डन का खिलता हुआ गुलाब, जिसे देखकर जी नहीं भरता और मेरा चेहरा श्मशान घाट सा वीरान, जहाँ पहली बार भी कोई नहीं जाना चाहता। सुप्रीम कोर्ट की अपील हाई कोर्ट में नहीं की जाती, ऐसा मानते हुए, मैं सारी कमियां अपनी समझकर चुपचाप सुनता और सहता रहा।
मुझे तो लगता है कि जब राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने यह लिखा था कि–
“अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में है पानी”, तब उनको भी शायद पुरूषों का भविष्य ज्ञात नहीं था। अन्यथा वह कवि सुधीर गुप्ता “चक्र” की इन पंक्तियों का समर्थन करते कि – “पुरूष जीवन बस तेरी यही कहानी, जेब होगी खाली और आँखों में होगा पानी”। अब मुझसे खाली जेब, आँखों में पानी और तिरस्कार सहन नहीं होता। इसलिए मैंने विद्योतमा द्वारा तिरस्कृत किए गए, महाकवि कालीदास की तरह घर छोड़ने का अभूतपूर्व निर्णय लेते हुए मानवाधिकार आयोग की शरण लेकर
कोरोना वेक्सीन लगने के बाद जान की निश्चित
सुरक्षा जैसा अपना आगे का भविष्य सुरक्षित कर लिया है।