दहेज का रोग
बढ रहा है
इसलिए
भिखारी भी
भिखारी से
दहेज मांग रहा है
और
कन्यादान में
उसकी
रोजी-रोटी वाला
चौराहा मांग रहा है।
बुधवार, 23 फ़रवरी 2011
दहेज
प्रस्तुतकर्ता
kavisudhirchakra.blogspot.com
पर
बुधवार, फ़रवरी 23, 2011
लेबल:
कविताएं (साहित्यिक)
1 टिप्पणियाँ
पावर कट
प्रस्तुतकर्ता
kavisudhirchakra.blogspot.com
पर
बुधवार, फ़रवरी 23, 2011
लेबल:
कविताएं (हास्य)
0
टिप्पणियाँ
विद्युत विभाग की
महिला कर्मचारी से
दुःखी स्वर में
उसके
प्रेमी ने कहा
सर्दी में तुम
मुझसे
दो टाइम मिलती थीं
लेकिन
गर्मी में
एक टाइम मिलने में भी
आनाकानी कर रही हो
यह बात
मुझे खल रही है !
विद्युतीय अदा के साथ
महिला बोली
आजकल गर्मी है
इसलिए
पावर कट चल रही है।
महिला कर्मचारी से
दुःखी स्वर में
उसके
प्रेमी ने कहा
सर्दी में तुम
मुझसे
दो टाइम मिलती थीं
लेकिन
गर्मी में
एक टाइम मिलने में भी
आनाकानी कर रही हो
यह बात
मुझे खल रही है !
विद्युतीय अदा के साथ
महिला बोली
आजकल गर्मी है
इसलिए
पावर कट चल रही है।
कसम
प्रस्तुतकर्ता
kavisudhirchakra.blogspot.com
पर
बुधवार, फ़रवरी 23, 2011
लेबल:
कविताएं (हास्य)
0
टिप्पणियाँ
मंत्री-पुत्र ने
मंदिर में
भगवान के समक्ष
पुजारी को
बनाते हुए गवाह
खायी कसम
और कहा-
मैं
अपने पिता के पदचिन्हों पर ही चलूँगा
इसलिए
आजीवन विवाह नहीं करूंगा।
मंदिर में
भगवान के समक्ष
पुजारी को
बनाते हुए गवाह
खायी कसम
और कहा-
मैं
अपने पिता के पदचिन्हों पर ही चलूँगा
इसलिए
आजीवन विवाह नहीं करूंगा।
महंगाई
प्रस्तुतकर्ता
kavisudhirchakra.blogspot.com
पर
बुधवार, फ़रवरी 23, 2011
लेबल:
कविताएं (हास्य)
0
टिप्पणियाँ
बढती हुई
महंगाई से
नेताजी को
मजा आ रहा है
यह उनको
बहुत भा रहा है
क्योंकि
नेताजी के पेट का
भौगोलिक आकार
महंगाई के ही
अनुपात में
बढता जा रहा है।
महंगाई से
नेताजी को
मजा आ रहा है
यह उनको
बहुत भा रहा है
क्योंकि
नेताजी के पेट का
भौगोलिक आकार
महंगाई के ही
अनुपात में
बढता जा रहा है।
बर्थडे
प्रस्तुतकर्ता
kavisudhirchakra.blogspot.com
पर
बुधवार, फ़रवरी 23, 2011
लेबल:
कविताएं (हास्य)
0
टिप्पणियाँ
चालीस वर्ष की
उम्र में
उनका
बर्थडे मन रहा है
अत्यधिक महँगाई के कारण
केक के ऊपर
चालीस मोमबत्तियाँ नहीं
चालीस बाट का
बल्ब जल रहा है।
उम्र में
उनका
बर्थडे मन रहा है
अत्यधिक महँगाई के कारण
केक के ऊपर
चालीस मोमबत्तियाँ नहीं
चालीस बाट का
बल्ब जल रहा है।
मिसबिहेव
प्रस्तुतकर्ता
kavisudhirchakra.blogspot.com
पर
बुधवार, फ़रवरी 23, 2011
लेबल:
कविताएं (हास्य)
0
टिप्पणियाँ
एक पुजारी ने
भगवान के साथ
किया मिसबिहेव
पूजा में चढाए
कागज के फूल
और
आरती में चलाया टेप।
भगवान के साथ
किया मिसबिहेव
पूजा में चढाए
कागज के फूल
और
आरती में चलाया टेप।
मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011
टाइम पास आशिक
प्रस्तुतकर्ता
kavisudhirchakra.blogspot.com
पर
मंगलवार, फ़रवरी 22, 2011
लेबल:
कविताएं (साहित्यिक)
0
टिप्पणियाँ
आजकल
धनाड्य घरों की लडकियाँ भी
कार से जाने की जगह
बस स्टॉप से चढ़ना पसंद करती हैं
क्योंकि
प्रेमी ढूँढने के लिए
बस के इंतजार में
परिचय अपने आप हो जाता है
और
पेंग भी
अपने आप बढ़ जाती हैं
फिर
आँख की पुतली से
विभिन्न कोणों का प्रयोग करते हुए
ढूँढ ही लेती हैं
टाइम पास आशिक को
जिसने
नहीं भरा महीने भर से
मकान का किराया
हो सकता है
गरीब हो वह
लेकिन
प्रेमिका के साथ
हर रोज खर्च होता है
एक हरा नोट
और
उधार के स्टेटस की खातिर
वेटर को
टिप में देना पड़ता है
बचा हुआ दस का नोट
जिससे खरीदा जा सकता है
अँधेरे कमरे के लिए एक बल्ब
शाम को लौटते वक्त
कभी नहीं भूलती प्रेमिकाएं
गोलगप्पे या भेलपूरी खाना
पैसे देते वक्त
प्रेमी का बढ़ जाता है रक्तचाप
क्योंकि
खाली पर्स मुँह चिढ़ाकर
झूठ बुलवा ही देता है
सॉरी डार्लिंग
किसी ने पर्स मार दिया
तब
बुझा मन और
थकान भरा चेहरा लिए
घर पहुँचने पर
नहीं आती नींद
क्योंकि
हर रोज की तरह
कल सुबह फिर होगी बेइज्जती
और
किराया नहीं मिलने पर होगी
सामान जब्त करने की धमकी
आधी रात बीतने पर भी
नींद कोसों दूर है
फिर भी
नहीं है कोई दुःख
किसी बात का
क्योंकि
प्रेमिका केंद्रित हो चुकी है
आँखों की पुतलियों में।
धनाड्य घरों की लडकियाँ भी
कार से जाने की जगह
बस स्टॉप से चढ़ना पसंद करती हैं
क्योंकि
प्रेमी ढूँढने के लिए
बस के इंतजार में
परिचय अपने आप हो जाता है
और
पेंग भी
अपने आप बढ़ जाती हैं
फिर
आँख की पुतली से
विभिन्न कोणों का प्रयोग करते हुए
ढूँढ ही लेती हैं
टाइम पास आशिक को
जिसने
नहीं भरा महीने भर से
मकान का किराया
हो सकता है
गरीब हो वह
लेकिन
प्रेमिका के साथ
हर रोज खर्च होता है
एक हरा नोट
और
उधार के स्टेटस की खातिर
वेटर को
टिप में देना पड़ता है
बचा हुआ दस का नोट
जिससे खरीदा जा सकता है
अँधेरे कमरे के लिए एक बल्ब
शाम को लौटते वक्त
कभी नहीं भूलती प्रेमिकाएं
गोलगप्पे या भेलपूरी खाना
पैसे देते वक्त
प्रेमी का बढ़ जाता है रक्तचाप
क्योंकि
खाली पर्स मुँह चिढ़ाकर
झूठ बुलवा ही देता है
सॉरी डार्लिंग
किसी ने पर्स मार दिया
तब
बुझा मन और
थकान भरा चेहरा लिए
घर पहुँचने पर
नहीं आती नींद
क्योंकि
हर रोज की तरह
कल सुबह फिर होगी बेइज्जती
और
किराया नहीं मिलने पर होगी
सामान जब्त करने की धमकी
आधी रात बीतने पर भी
नींद कोसों दूर है
फिर भी
नहीं है कोई दुःख
किसी बात का
क्योंकि
प्रेमिका केंद्रित हो चुकी है
आँखों की पुतलियों में।
तुम कब आओगे पता नहीं (पुरस्कृत कविता)
प्रस्तुतकर्ता
kavisudhirchakra.blogspot.com
पर
मंगलवार, फ़रवरी 22, 2011
लेबल:
कविताएं (साहित्यिक)
0
टिप्पणियाँ
तुम सुधीर गुप्ता “चक्र”
कब आओगे
पता नहीं।
साठ डिग्री तक
पैरों को मोड़कर
और
पीठ का
कर्व बनाकर
दोनों घुटनों के बीच
सिर रखकर
एक लक्ष्य दिशा की ओर
खुले हुए स्थिर पलकों से
बाट जोहती हूँ तुम्हारी
तुम
कब आओगे
पता नहीं।
दोनों पलकों के बीच
तुम्हारे इंतजार का
हाइड्रोलिक प्रेशर वाला जेक
पलक झपकने नहीं देता।
दूर दृष्टि का
माइनस फाइव वाला
मोटा चश्मा चढ़ा होने पर भी
बिना चश्मे के ही
दूर तक
देख सकती हूँ मैं तुमको
लेकिन
तुम
कब आओगे
पता नहीं।
एकदम सीधी
और
शांत होकर चलने वाली
डी सी करण्ट की तरह
ह्रदय की धडकन का प्रवाह
तुम्हारे आने की संभावना से
ऊबड़-खाबड़
ए सी करण्ट में बदलकर
ह्रदय की गति को
अनियंत्रित कर देता है
लेकिन
जब संभावना भी खत्म हो जाती है
तब लगता है
ज्यामिति में
अनेक कोण होते हैं
इसलिए
क्यों न लम्बवत होकर
एक सौ अस्सी डिग्री का कोण बनाऊं
और
थक चुकी आंखों को
बंद करके सो जाऊं
क्योंकि
तुम
कब आओगे
पता नहीं।
कब आओगे
पता नहीं।
साठ डिग्री तक
पैरों को मोड़कर
और
पीठ का
कर्व बनाकर
दोनों घुटनों के बीच
सिर रखकर
एक लक्ष्य दिशा की ओर
खुले हुए स्थिर पलकों से
बाट जोहती हूँ तुम्हारी
तुम
कब आओगे
पता नहीं।
दोनों पलकों के बीच
तुम्हारे इंतजार का
हाइड्रोलिक प्रेशर वाला जेक
पलक झपकने नहीं देता।
दूर दृष्टि का
माइनस फाइव वाला
मोटा चश्मा चढ़ा होने पर भी
बिना चश्मे के ही
दूर तक
देख सकती हूँ मैं तुमको
लेकिन
तुम
कब आओगे
पता नहीं।
एकदम सीधी
और
शांत होकर चलने वाली
डी सी करण्ट की तरह
ह्रदय की धडकन का प्रवाह
तुम्हारे आने की संभावना से
ऊबड़-खाबड़
ए सी करण्ट में बदलकर
ह्रदय की गति को
अनियंत्रित कर देता है
लेकिन
जब संभावना भी खत्म हो जाती है
तब लगता है
ज्यामिति में
अनेक कोण होते हैं
इसलिए
क्यों न लम्बवत होकर
एक सौ अस्सी डिग्री का कोण बनाऊं
और
थक चुकी आंखों को
बंद करके सो जाऊं
क्योंकि
तुम
कब आओगे
पता नहीं।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)