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मंगलवार, 3 जुलाई 2012

तुम कब आओगे पता नहीं

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तुम
कब आओगे
पता नहीं
साठ डिग्री तक
पैरों को मोड़कर
और
पीठ का
कर्व बनाकर
दोनों घुटनों के बीच
सिर रखकर
एक लक्ष्य दिशा की ओर
खुले हुए स्थिर पलकों से
बाट जोहती हूँ तुम्हारी
तुम
कब आओगे
पता नहीं

दोनों पलकों के बीच
तुम्हारे इंतजार का
हाइड्रोलिक प्रेशर वाला जेक
पलक झपकने नहीं देता

दूर दृष्टि का
माइनस फाइव वाला
मोटा चश्मा चढ़ा होने पर भी
बिना चश्मे के ही
दूर तक
देख सकती हूँ मैं तुमको
लेकिन
तुम
कब आओगे
पता नहीं

एकदम सीधी
और
शांत होकर चलने वाली
डी सी करण्ट की तरह
ह्रदय की धड‌कन का प्रवाह
तुम्हारे आने की संभावना से
ऊबड़-खाबड़
ए सी करण्ट में बदलकर
ह्रदय की गति को
अनियंत्रित कर देता है
लेकिन
जब संभावना भी खत्म हो जाती है
तब लगता है
ज्यामिति में
अनेक कोण होते हैं
इसलिए
क्यों न लम्बवत् होकर
एक सौ अस्सी डिग्री का कोण बनाऊं
और
थक चुकी आंखों को
बंद करके सो जाऊं
क्योंकि
तुम
कब आओगे
पता नहीं।

कवि का दुःख (पुरस्कृत कविता)

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(हिन्द-युग्म द्वारा अगस्त 2010 में आयोजित विश्वस्तरीय यूनिकवि काव्य प्रतियोगिता में आठवां स्थान प्राप्त)


अगर
भूल जाऊँ कविता लिखना
तो
शीत की तरह
उभर आएँगे
स्मृति पटल पर
तमाम दुःख
शोक और
मानवीय संवेदनाओं के
मिले‌‌-जुले भाव
और
तब
हवा के थपेड़ों से पिटती हुई
अनिश्चित गंतव्य की ओर
चलती हुई नाव
और
उसमें प्रथम बार यात्रा कर रहे
सहमे हुए यात्री की आँखों से
निकल आएँगे अश्रु
और
पेट में उठेगा
ज्वार-भाटे सा दर्द
माथे पर होंगे
मिश्रित भाव
तब
शर्म से
समा जाएगी धरती
आकाश में या
पुनः स्मरण हो आएगी
कवि को कविता।