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गुरुवार, 21 सितंबर 2017

वोट डालने क्यों गए

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हे लोकतंत्र के दगाबाज
काले कारनामों के सरताज
हिंदु, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई
काहे के भाई
बताओ
यह कहकर तुमने धार्मिक आग क्यों लगाई?
तुम
घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोप में
जेल में बंद रहकर भी
बिना प्रचार के
चुनाव जीत गए
दुःख होता है
हम वोट डालने ही क्यों गए॥1

अवैध संतानों के जन्मदाता
खुद को कहते हो भारत भाग्य विधाता
फिर
नारायणदत्त तिवारी वाली हरकत करते
तुम्हें जरा भी शर्म नहीं आयी
तुम्हारी लपलपाती जीभ देखकर
वह मजूरन
आज तक अपना आँचल नहीं ढक पायी
तुमने उसकी आबरू भी लूटी और
वोट मांगने भी गए
दुःख होता है
हम वोट डालने ही क्यों गए॥2

हे कामदेव के ईष्ट समर्थकों
आशाराम बापू और राम-रहीम के अनुयायी
बहू-बेटियों की इज्जत भी अब
तुमसे कहाँ सुरक्षित रह पायी
अपराध तुम करो 
धारा हम पर लगे
तुम पर
काहे की धारा काहे की रोक
तुम चाहे जिसका गाल छुओ तो कोई बात नहीं
हमने टमाटर छुये तो अपराधी हो गए
दुःख होता है
हम वोट डालने ही क्यों गए॥3

नगरपालिका की पानी की टंकी पर लगे
मधुमक्खी के छत्तों
बरसाती कुकुरमुत्तों
तुमने
फकीरी में जन्म लिया
जवानी गरीबी में बीती और
नेता बनते ही अमीर हो गए
इसलिए
तुम्हारी वसीयत के हकदार
केवल दो बच्चे ही लिखे गए
और जिन दर्जनों बच्चों की शक्ल तुमसे मिलती है
उनका क्या?
उन्हें तुम कैसे भूल गए
दुःख होता है
हम वोट डालने ही क्यों गए॥4

अर्थी के लिए बजते बाजों
शोकधुन पर थिरकने वाले धोखेबाजों
सत्ता पाकर हुए घमंडी
महाभारत के चालबाज शिखंडी
शहर में जब भी दंगा हुआ है
मजहब के नाम पर आदमी नंगा हुआ है
इसलिए
तुम्हारे एक इशारे पर कुछ लोग
गौ मांस का टुकड़ा मंदिर में फेंक गए
और कुछ लोग मस्जिद के बाहर
 नमः शिवाय लिखकर भाग गए
साम्प्रदायिक दंगों में हजार मरे
सरकारी आँकड़ों में सौ लिखे गए
वोट की खातिर तुम कितना गिर गए?
दुःख होता है
हम वोट डालने ही क्यों गए॥5

मौत का फरमान लिखे काले अक्षर
बंजर भूमि में शिलान्यास के पत्थर
जिन इमारतों का तुमने 
किया था शिलान्यास
दबकर उनमें 
सैकड़ों मजदूर मर गए
 कथनी अच्छी है तुम्हारी 
 करनी अच्छी है
फिर तुम 
उदघाटन करने ही क्यों गए
तुम्हारे दुष्कर्म देखकर
माँ-बाप भी सोचते होंगे
तुम 
पैदा होते ही क्यों नहीं मर गए
दुःख होता है
हम वोट डालने ही क्यों गए॥6


बुधवार, 26 अप्रैल 2017

पवित्र रिश्ता

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माँ अंकित से शादी करके बहू घर लाने की बात कह-कहकर थक गयी थी। वो चाहती थी कि उसके स्वर्ग सिधारने से पहले बहू घर पर आ जाये जिससे उसके बाद वह अंकित का ध्यान रख सके। धीरे-धीरे समय बीतता रहा और माँ बूढ़ी होती गयी।
             एक दिन अंकित दुकान पर पहुँचकर अगरबत्ती भी नहीं लगा पाया था कि एक सुंदर सी युवती आयी और बोली एक पैकेट मैगी दे दीजिए। अंकित उसकी सुंदरता देखकर आश्चर्यचकित हुआ और बिना पलक झपके उसे ही देखता रहा। कुछ देर बाद जेब में रखे मोबाइल की घंटी ने उसे सचेत किया तो उसने मैगी का पैकेट युवती को देते हुये कहा यह लीजिए और बोनी का टाइम है छुट्टे पैसे देना। युवती ने हाँ में सिर हिलाते हुये पर्स टटोला तो वह खाली था। शर्मिंदा होते हुये वह बोली माफ कीजिए मैं भूल से दूसरा पर्स ले आयी मैगी वापिस रखिये मैं अभी पैसे लेकर आती हूँ कहकर वह पैसे लेने चली गयी।

अबतक शादी की मना करते-करते अंकित उस युवती को दिल दे बैठा और मन ही मन सोचने लगा कि उसके पुनः आते ही उससे अपने साथ शादी के रिश्ते का प्रस्ताव रख दूंगा। कुछ ही देर बाद युवती वपिस आयी और अंकित ने उसे मैगी का पैकेट देते हुये अपनी बात कहना चाहा तभी एक बच्चा दौड़ता हुआ आया और उस युवती का हाथ पकड़कर बोला कि मम्मी मुझे टॉफी खाना है। “मम्मी” शब्द सुनकर अंकित को झटका तो लगा लेकिन तुरंत ही उसने अपने आपको सम्भाला और युवती के विवाहित होने की जानकारी के अभाव में उससे शादी का मन में जो विचार आया था उसके लिये क्षमा मांगी और दुकान में रखी हुयी राखी उठाकर उसकी ओर बढ़ाते हुये कहा बहिनजी मुझे राखी बांधकर एक नये और पवित्र रिश्ते की शुरूआत करो।

युवती अंकित के विचार जानकर बहुत प्रभावित हुयी और उसने तुरंत ही उसे राखी बांधते हुये कहा आज मैं गर्व से कह सकती हूँ कि मेरा भी एक भाई है। राखी बांधने के बाद दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं था वे छलछलाती आँखों से एक-दूसरे को इस तरह देखने लगे जैसे वर्षों बाद बिछुड़े हुये भाई-बहिन मिले हों।

भ्रूण की जाँच

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विकट गरीबी में दिहाड़ी मजदूर रामलाल पति-पत्नी और छः लड़कियों के साथ घर का खर्चा बड़ी मुश्किल से चला पा रहा था और यह समस्या दिन प्रतिदिन बिगड़ती ही जा रही थी क्योंकि लड़के की चाह में कुछ समय बाद परिवार में हर बार एक नया सदस्य बढ़ जाता था।
             छठवी लड़की अभी साल भर की भी नहीं हो पायी थी कि रामलाल की पत्नी कमला पुनः गर्भवती हो गयी। गर्भधारण के बाद एक दिन सरकारी अस्पताल से जाँच के बाद बाहर निकले पति-पत्नी के चेहरे पर अजीब सी खुशी और आत्मविश्वास दिखायी दिया जैसे इस बार लड़का हो ही जायेगा। पता नहीं क्यों रामलाल अपनी खुशी छुपा नहीं सका और बच्चे के जन्म से पहले ही उसने मिठाई बाँट दी। समय से पहले और परिणाम जाने बिना मिठाई बांटना बड़ी अचरज वाली बात थी इसलिए जब रामलाल से मैंने इसका कारण पूछा तो वह छाती फुलाकर बोला साहब इस बार लड़का होगा इसलिए मिठाई बाँट रहा हूँ। मैंने आश्चर्य से कहा- यह तुम कैसे कह सकते हो कि इस बार लड़का ही होगा? पूरे विश्वास के साथ वह बोला कि इस बार मैं कोई जोखिम नहीं उठाना चाहता था इसलिए मैंने पाँच हजार रूपये रिश्वत देकर जन्म से पहले ही भ्रूण की जाँच करवा ली है।

कुछ पल मौन रहकर मैंने उससे कहा क्या तुम्हे नहीं मालूम कि जन्म से पहले भ्रूण की जाँच करवाना दण्डनीय अपराध है और फिर तुम्हारे लिये तो पाँच हजार रूपये की रकम भी बहुत बड़ी है। कैसे किया तुमने यह सब?  गर्वीले और रोबदार अंदाज में वह बोला, पैसा बोलता है साहब। पाँच क्या डॉक्टर पचास हजार रूपये भी मांगता तो दे देता। लड़के के लिए क्या पैसे का मुँह देखना?

रामलाल द्वारा लड़के की चाह में निरंतर लड़कियों की उपेक्षा और रिश्वत देकर भ्रूण की जाँच करवाने जैसे आपराधिक कृत्य को सहर्ष बताये जाने पर मुझे रामलाल से घृणा होने लगी इसलिए अब मैंने उससे अन्य कोई भी प्रश्न पूछना उचित नहीं समझा और वापिस घर की ओर चल दिया।  

उद्घाटन का लाभ

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शहर से एकदम अलग-थलग विकास को तरसता चमोली गाँव जहाँ लोग आने के लिए सौ बार सोचते हैं। गाँव के लोगों ने आपस में धन एकत्रित करके राहगीरों के लिए वहाँ एक विश्राम गृह का निर्माण करवाया और उसका उद्घाटन ग्राम प्रधान से करवाने का निर्णय सर्वसम्म्ति से मान्य हुआ। लेकिन एकमात्र व्यक्ति संतोष विश्राम गृह का उद्घाटन प्रधान कि अपेक्षा मंत्री जी से करवाने के पक्ष में था।
             पहले तो बिना जाने सभी संतोष की बात का विरोध करते रहे लेकिन जब उसने मंत्री जी से उद्घाटन करने का लाभ बताया कि मंत्री जी जब गाँव में आएंगे तो शहर से गाँव तक की सड़क के गड्ढे जिनके भरने के लिये हम महीनों से प्रयास कर रहे हैं वह अविलम्ब भर दिये जाएंगे और मंत्री जी द्वारा उद्घाटन की खबर उनके साथ आये हुए मीडिया वाले अखबार और टी वी में दिखाएंगे तो हमारे गाँव को एक नयी पहचान भी मिलेगी जिससे भविष्य में दूसरी समस्याओं से छुटकारा मिलना भी आसान हो सकेगा। संतोष की सार्थक बात को सुनकर प्रधान ने इसका अनुमोदन किया और सभी ने इसमें ही गाँव का निहित समझकर अपनी हामी भर दी। अब सबको मंत्री जी के आने का नहीं बल्कि मंत्री जी के आने से सड़क के गड्ढे भरने का इंतजार है।   

टूटा चश्मा

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माँ ने आवाज दी बेटा पवन बहुत दिन से मेरा चश्मा टूटा हुआ है एक दाँत भी हिल रहा है। न ठीक से देख पा रही हूँ और न ही ठीक से खाना खा पा रही हूँ। माँ की बात सुनकर पवन ने अपनी पत्नी गीता की ओर देखते हुये दबे स्वर में कहा- माँ इस बार तुम्हारे पोते राजू का एडमिशन करवाना है उसकी किताब-कॉपियों का खर्चा भी बहुत अधिक है। आप तो जानती ही हो मुझे अभी कितने लोगों का उधार चुकाना है। अगले महीने कोशिश करूंगा।
            तभी दरवाजे की घंटी बजी गीता ने दरवाजा खोला और पवन से बोली सुनो जी, बाहर वृद्धाश्रम से कुछ लोग चंदा मांगने आए हैं। कह रहे हैं एक लाख रूपये दोगो तो आपके नाम से वहाँ एक कमरा बनवाया जायेगा जिससे लोग आपको सदियों तक याद करेंगे। मैं तो कहती हूँ पुण्य के कामों में देरी नहीं करना चाहिए और फिर जरूरत पड़ने पर वृद्धाश्रम के उस कमरे में तुम्हारी माँ भी तो रह सकती हैं। पवन ने गीता की हाँ में हाँ मिलायी और तुरंत एक लाख रूपये का चेक वृद्धाश्रम के लिए दे दिया। 

बेटे और बहू की यह सब बातें सुनकर दाँत दर्द को सहते हुए माँ अपने पुराने और टूटे हुए चश्मे को फिर से जोड़ने की कोशिश करने लगी।

महान विचार

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       आज अशोक बहुत खुश था क्योंकि बहुत दिनों बाद वह माँ और पत्नी के साथ चाचा से मिलने कानपुर जा रहा था। लगभग आधा रास्ता तय करने के बाद सामने से आते बेकाबू ट्रक से उसकी गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। वह तो सकुशल बच गया लेकिन माँ और पत्नी को अत्यधिक रक्त बहने के कारण पास के ही चिकित्सालय में प्राथमिक उपचार के लिए ले जाया गया जहाँ डॉक्टर ने अशोक से दोनों के लिए एक-एक बोतल खून की व्यवस्था करने को कहा। अशोक तुरंत बोला- डॉक्टर साहब मेरा ब्लड ग्रुप माँ और पत्नी के ब्लड ग्रुप से मेच करता है इसलिए आप मेरा दो बोतल खून ले लीजिए। डॉक्टर ने दुर्घटना के कारण भयभीत अशोक से कहा तुम्हारी हालत देखकर हम तुम्हारा एक बोतल से अधिक खून नहीं ले सकते इसलिए यह बताओ कि पहले किसकी जान बचाएं।
 
            बिना तनाव के अशोक ने कहा कि डॉक्टर साहब इंसान को जीवन में मार्गदर्शन के लिए माँ और दुःखों को बांटने के लिए पत्नी की जरूरत होती है इसलिए मेरे लिए दोनों जरूरी हैं आप मेरा दो बोतल ही खून लीजिए।

            एक माँ अपने पुत्र और एक पत्नी अपने पति के महान विचार जानकर हिम्मत से भर उठीं और बिना खून चढ़े ही डॉक्टर से कहा जिस माँ का ऐसा बेटा और जिस पत्नी का ऐसा पति हो उसे खून की जरूरत नहीं है कहते हुए छलछलाती हुयी आँखों से माँ और पत्नी दोनों अशोक का हाथ पकड़कर बाहर आ गयीं।