नदी दुःखी है
सागर में समाने के बाद
बुरी तरह
फंस चुकी है
समुद्र के जाल में
खो चुकी है
स्वयं का अस्तित्व
खत्म हो चुके हैं
उसके किनारे
और
हलचल
समुद्र की हिलोरों में
कर चुकी है वह समर्पण
नदी को चलना ही होगा
समुद्र के प्रवाह के साथ
क्योंकि
एक पूरी नदी
खाली हो चुकी है समुद्र में
और
पूरी तरह
समुद्र थोप चुका है
नदी पर अपनी इच्छाएं
और अब
नदी को भी हो चुका है
समुद्र में समाने की
अपनी गलती का अहसास
नदी का
समुद्र में समाना तो
एक सदियों पुरानी परंपरा है
नदी को
स्त्री के रूप में
समुद्र के आगे
झुकना ही होगा
सशर्त समझौता होता
तो भी ठीक था
लेकिन
शर्त कोई नहीं
बस
कट्टरपंथी समुद्र के आगे
केवल और केवल
समझौता ही करना है
समझ नहीं आता
नदी का समुद्र में समाना
एक हादसा था
या
नदी की आत्महत्या
फिर भी
मुझे लगता है
समुद्र में समाने के बाद
नदी को महसूस नहीं किया जा सकता
न ही
सुनी जा सकती हैं उसकी सिसकियाँ
इसलिए
यह आत्महत्या ही है।
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