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शुक्रवार, 22 अक्तूबर 2021

चाय तैयार है

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चाय तैयार है

आपकी चाय का स्वाद बढ़ाने वाली किताब

 

आत्महत्या कैसे करें ?

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आत्महत्या कैसे करें ?

तनाव मुक्त करके हँसाने की फुल गारंटी वाली किताब

सोमवार, 3 मई 2021

प्रतिक्रिया

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जब
स्त्री के चेहरे पर
तनाव दिखता है
हर कोई उसे
तनाव से बचने को कहता है
लेकिन
जब वह मुस्कुराती है
तो सबको
चालू नजर आती है
इसलिए
अब वह बिल्कुल चुप है
और बहरी होना चाहती है
क्योंकि
उसके चुप रहने पर भी
कोई न कोई
प्रतिक्रिया अवश्य आती है।

रविवार, 2 मई 2021

दाँव

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जब भी
चौपड़ सजती है
किसकी हार होगी
और
किसकी जीत
यह बात
मायने नहीं रखती है
क्योंकि
दाँव पर
केवल औरत ही लगती है।

शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

स्त्री

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उसने
आँख दिखायी
मैं सहम गयी
उसने
इशारा किया
मैं दौड़ी चली आयी
उसने
जो भी कहा
मैंने सुना
उसने
जो भी बताया
मैंने जाने बिना ही
सबकुछ मान लिया
उसके कहने
और
मेरे मानने में
बात थी सिर्फ इतनी
वो पुरूष था
और
मैं स्त्री।

परिभाषा

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शिक्षा की
कोई उम्र नहीं होती
कोई परिभाषा भी नहीं होती है
इसलिये
एक अनपढ़ स्त्री
पुरूष के मन की बैचेनी
आतुरता
लपलपाते होंठ
और
उसकी कामांध आँखों से
संभावित
बलात्कार को पढ़ लेती है।

संभावना

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जो
विषमता में भी
संभावना खोजती है
वही तो
स्त्री होती है।

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

कीमत

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चेहरे पर
मानसिक तनाव
उभरती हुयी धमनियाँ
बढ़ता हुआ
श्वाँसों का ग्राफ
धड़कता हृदय
फड़फड़ाते होंठ
हाथ झाड़ते शिकारी कुत्ते
और
खामोश होतीं
उसकी सिसकियाँ  
सच में
एक औरत होने की
कितनी कीमत चुकाती हैं स्त्रियाँ

पुरूष प्रधान समाज

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पुरूष प्रधान समाज
स्त्री के
तन के अलावा
और कुछ नहीं पढ़ पाया
एक स्त्री के पास
तन के अलावा भी
बहुत कुछ है पढ़ने को
शायद
वेद-पुराणों से भी ज्यादा।

शनिवार, 24 अप्रैल 2021

डस्टबिन

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एक स्त्री को देखते ही
कामांध पुरूष
करता है उसकी देह का
गंदा मानसिक चित्रण
और
समा जाता है उसके मन में 
गंदे विचारों का ढेर सारा कचरा
तब सोचिए
एक पुरूष
अपनी सोच और विचारों से
क्यों नहीं जीत पाता है
क्योंकि
उसका मस्तिष्क
ओछे विचारों की गंदगी से भरी
डस्टबिन हो जाता है।

पीड़ा

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 एक स्त्री
सब कुछ जानती है
यहाँ तक की
पिंजरे में बंद
पंछी की पीड़ा को भी।

गुरुवार, 22 अप्रैल 2021

दो शब्द

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चरित्र
और
मर्यादा
ये दो शब्द
किसी अनपढ़ ने
अनायास ही गढ़े होंगे
अन्यथा
ये केवल स्त्री के हिस्से में ही क्यों आते ?


औरत.. सवालों के घेरे में

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औरत को
सवालों के घेरे में लेते हुए
उसने पूछा
औरत क्या है ?
तपाक से बोली वो
चट्टान पर उगती हुयी दूब ....।

बुधवार, 21 अप्रैल 2021

वह तोड़ती पत्थर

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वर्षों पहले
महाकवि निराला ने
लिखी थी कविता
वह तोड़ती पत्थर
वो बात
अभी तक चरितार्थ हो रही है
औरत
आज भी पत्थर तोड़ रही है।

आपदा

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जब
पृथ्वी का संतुलन बिगड़ता है
तब ही
आपदा आती है
कन्या भ्रूण हत्या भी
आपदा का संकेत है। 

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

दावा

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उसकी शर्ट के
कुछ बटन टूटे हैं
इसलिए
शर्ट खुली-खुली रहती है
और इससे
इस बात की भी पुष्टि होती है
कि
उस घर में
कोई औरत नहीं रहती है।

बरसात

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एक औरत को
बरसात
अच्छी नहीं लगती है
क्योंकि
उससे ज्यादा तो
उसकी आँखें बरसती हैं।

शनिवार, 17 अप्रैल 2021

इंटरव्यू

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नौकरी का
इंटरव्यू देने के लिये
जैसे
तुम कमरे में आयी हो
जूतियाँ उतारकर
ठीक
वैसे ही
उतार दो इन्हें भी .... 
यह
वो औपचारिक प्रक्रिया है
जिसमें
तुम्हारा पास होना अनिवार्य है।

सरल

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औरतें
बहुत सरल होती है
और
सरल होना
बहुत कठिन होता है।

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021

पछतावा

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सबका ध्यान रखने वाली औरत
आज
देर तक सो गयी
शायद
वो अस्वस्थ थी
फिर भी
पहली बार मैंने
उसकी आँखों में
देर से उठने का पछतावा देखा।


मालिकाना हक

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सदियों से
घंटों समय देकर
जिसे
बड़े मन से
सजाती-सँवारती है औरत
आज
अपनी उस देह का
मालिकाना हक चाहती है।

गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

अर्थ

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कलयुग में
तार-तार होते रिश्ते
और
बलात्कार का अर्थ जान चुकी
बेटी की चिंता
माँ को दिन-रात सताने लगी
वो सोच रही थी
कि
कैसे बेटी का भय दूर कर पाऊंगी
वो
कुछ कह पाती
इससे पहले ही
बेटी ने
माँ से कहा
आज से
मैं पापा के साथ स्कूल नहीं जाऊंगी।


हाथ

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स्त्री जाति की
विडम्बना देखो
चाहें
बच्ची हो या
जवान औरत
उसके हाथ
कभी खाली नहीं रहते हैं
बचपन
स्कर्ट नीचे करने में
और
जवानी
दुपट्टा ठीक करने में
व्यस्त रहते हैं।

साथ

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औरत
हमेशा ही
पुरूष के पीछे-पीछे चली
फिर भी
आश्वस्त होने को
पुरूष ने
जब पीछे मुड़कर देखा
तो
कभी निराश नहीं हुआ
क्योंकि
वो साथ थी।

बुधवार, 7 अप्रैल 2021

वसीयत

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(विश्वस्तरीय 'यूनिकवि' काव्य प्रतियोगिता में 9 वां स्थान प्राप्त पुरस्कृत कविता)
  

जिंदगी भर
पिता ने
कवच बनकर
बेटे को सहेजा
लेकिन
पुत्र कोसता रहा
जन्मदाता पिता को
और
सोचता रहा
जाने कब लिखी जाएगी वसीयत मेरे नाम

पुत्र ने
युवावस्था में जिद की
और
बालहठ को दोहरा कर
फैल गया धुँए सा
पिता ने
गौतम बुद्ध की तरह शांत रहकर
अस्वीकृति व्यक्त की

कुछ देर
शांत रहने के बाद
हाथ से रेत की तरह फिसलते
बेटे को देखकर
पिता बोला
मेरी वसीयत के लिए
अभी तुम्हें करना होगा
अंतहीन इंतजार

कहते हुए
पिता की आँखों में था
भविष्य के प्रति डर
और
पुत्र की आँखों का मर चुका था पानी
भूल गया था वह
पिता द्वारा दिए गए
संस्कारों की श्रृंखला
अब नहीं जानता वह
अच्छे आचार-विचार
व्यवहार और
संस्कारों को मर्यादा में रखना
क्योंकि
यूरिया खाद
और
परमाणु युगों की संतानों का भविष्य
अनिश्चित है

नालायक हो गए हो तुम
भूल गए
तुम्हारे आँसुओं को हर बार
ओक में लिया है
जमीन पर नहीं गिरने दिया
अनमोल समझकर
पिता के भविष्य हो तुम
तुम्हारी वसीयती दृष्टि ने
पिता की सम्भावनाओं को
पंगु बना दिया है

तुमने
मर्यादित दीवार हटाकर
उसे कोष्ठक में बंद कर दिया
तुम्हारी संकरी सोच से
कई-कई रात
आँसुओं से मुँह धोया है उसने

तुम्हारी
वस्त्रहीन इच्छाओं के आगे
लाचार पिता
संख्याओं के बीच घिरे
दशमलव की तरह
घिरा पाता है स्वयं को
और
महसूस करता है
बंद आयताकार में
बिंदु सा अकेला
जहाँ
बंद है रास्ता निकास का

चेहरे के भाव से
देखी जा सकती है उसके अंदर
मीलों लम्बी उदासी
और
आँखों में धुंधुलापन
तुम्हारी हर अपेक्षा
उसके गले में कफ सी अटक चुकी है

तुम
पिता के लिए
एक हसीन सपना थे
जिसकी उंगली पकड़कर
जिंदगी के पार जाना चाहता था वह
तुम्हारी
असमय ढे‌रों इच्छाओं से
छलनी हो चुका है वह
और
रिस रहा है
नल के नीचे रखी
छेद वाली बाल्टी की तरह

आज तुम
बहुत खुश हो
मैं समझ गया
तुम्हारी इच्छाओं की बेडि‌यों से जकड़ा
पिता हार गया तुमसे
और
लिख दी वसीयत तुम्हारे नाम
अब तुम
निश्चिंत होकर
देख सकते हो बेहिसाब सपने।

खेल

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औरतें
कभी खेल
नहीं खेल पायीं हैं
क्योंकि
खेली गयी हैं।