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मंगलवार, 18 सितंबर 2012

अंधेरा

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अंधेरा
बंद सांकल को घूरता है
और
करता है प्रतीक्षा
आगंतुक की
द्वार भी
सहमे हुए से
चुपचाप
एक-दूसरे का सहारा बनकर खडे‌ हैं

सुनसान अंधेरे में
ध्वनि
तालाब में फेंकी
कंकडी के  घेरे सा
विस्तार ले गई
अनंत को ताकता
शून्य
चेहरे की सलवटें
कम करने की कोशिश में व्यस्त है

अंधेरे में पड‌ते
पदचाप
स्पष्ट गिने जा सकते हैं
सांकल का स्पर्श
और
बंद दरवाजों को धक्का देकर
आगे बढ़ते पदचाप
अंधेरे सूनेपन को
खत्म करने का
प्रयास कर चुके हैं

आधी रात को
इतने अंधेरे में
न जाने
कौन आया होगा
निश्चित ही
जानता होगा अंधेरा
प्रतीक्षा तो
उसने ही की है
अंधेरा
चालाक है
तिलिस्मी है
नहीं है कोई आकृति उसकी
फिर भी
टटोल-टटोलकर
बढ़ता है आगे
उस छोर की ओर
जिसका
कोई पता नहीं
क्योंकि
इसके विस्तार का क्या पता
और
वैसे भी
तय किए गए फासले से
दूरी का पता नहीं चलता
क्योंकि
अंधेरे को
स्पर्श ही नाप सकता है

शोषण करता हुआ अंधेरा
पराक्रमी होने का ढिंढोरा पीटता है
..... ? ? ? ?
अरे!
क्या हुआ?
क्यों सिकुड़ने लगे
जानता हूँ
नहीं स्वीकारोगे तुम अपनी हार
भोर जो होने वाली है।

दूसरों के लिए भी जीकर देखो

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एक छोटी कील को
भारी हथौडे से ठोककर
क्या साबित करना चाहते हो तुम?
शायद
अपनी ताकत
लेकिन
वहम् है तुम्हारा
क्योंकि
जब तक कील सीधी है
ठोक सकते हो
लेकिन
मुड‌ गई तो
क्या कर लोगो
कुछ नहीं
बस!
दीवार की मजबूती को कोसोगे
हथौडा पटकोगे
और
कील फेंक दोगे

ये क्या 
कील नहीं ठोक पाए तो
कैलेंडर फाड़कर फेंक दिया
दरवाजे की चटकनी से भी तो
लटका सकते थे
या फिर
चिपका सकते थे
किसी दीवार पर 

तुम्हारी खीझ ने
कमजोर साबित कर दिया है तुम्हें
दाँतों से दबे कमजोर होंठ
तुम्हारे चेहरे की सलवटें
और
मानसिक तनाव भी 
अब नहीं जोड़ सकते
कागज के टुकडों को
एक निहत्थी कील के प्रति
स्वीकारना ही होगी तुम्हें
अपनी हिटलरशाही की हार

टेबिल पर रखे कागज को
पेपरवेट से दबाते समय
तुम्हारे चेहरे की प्रतिक्रिया
और
कसी हुई बत्तीसी
साफ-साफ बता रही है
कि
तुम
पेपरवेट के नीचे रखे
कागज को दबाकर
स्वयं को संतुष्ट करने का
असफल प्रयास कर रहे हो
सोच रहे हो
मैंने अपनी ताकत
और
पेपरवेट के दबाव से
किसी को दबाकर
अपनी जीत हासिल की 
फिर भ्रमित हो गए हो तुम
क्योंकि
कागज तुमसे डरा नहीं है
बल्कि
तुम्हारी बेवकूफी पर हँस रहा है
और
कह रहा है
कितना दबाओगे मुझे
अपनी भाषा
और
अपना निर्णय
नहीं बदलूंगा मैं
तुम्हें बरखास्त होना ही पडे‌गा

सिगरेट सुलगा कर खुश हो
कि
मैंने किसी को जला दिया
और
जितना लम्बा कश लूंगा
उतनी ही तेज जलेगी सिगरेट
तुम
इस बार भी
अपनी नपुंसक सोच से पिछड़ गए हो
क्योंकि
तुम क्या जलाओगे उसे
जलना तो उसकी नियति है
न कि
तुम्हारी जीत का हिस्सा

अब अंधेरे पर तुम्हारा गुस्सा
भई वाह
कितना अंधेरा समेटोगे अपनी मुठ्ठी में
अंगुली की संधि से
बाहर आ ही जाएगा
तुम्हारे विचित्र प्रयोग
कमजोरियों को उजागर करते हैं
तुम्हारी
सहमी हुई संवेदनाएँ
और
औचित्यहीन अनुभव
बीच चौराहे पर खडें हैं
तुम
गेरूआ वस्त्र पहनकर
अपने संकीर्ण विचारों को बिना बदले
स्वामी  या
सन्यासी कहला सकते हो
तुम
अपने प्रति
चुम्बकीय आकर्षण भी
पैदा कर सकते हो
लेकिन
अपनी आत्मा का विश्वास नहीं जीत सकते

तुम्हारा
संभावित पागलपन
केवल तुम्हारी हार नहीं
बल्कि
नपुंसक हार है
ध्यान रखो
गलत काम
और
गलत शब्द
तुरंत प्रसूत होते हैं
इस तरह
कब तक बढाओगे शोषण की मात्रा
निकालना ही होगी तुम्हें
अपने स्वार्थों की शवयात्रा
इसलिए
भरी हुई मोरी (नाली) की तरह
रूके पानी के बाद
एकदम खुल जाओ
और
अचानक बहाव की तरह
अपनी हारी हुई
जीत को बहाकर
दूसरों की जीत में ही
अपनी जीत देखो
क्योंकि
महापुरूष कहते हैं
अपने लिए तो सभी जीते हैं
दूसरों के लिए भी जीकर देखो।