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गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

माँ-बाप का साथ

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पुरानी सोच
और
पुराना घर
कहां तालमेल खाते हैं
जब
मत भिन्न हों
तो
मन भी भिन्न हो जाते हैं

अपनेपन को खत्म करके
नयेपन को प्राथमिकता देना
कहां की समझदारी है
इसलिए
पिता द्वारा रोपे गए
जिस नीम के पेड़ को
तुम
कटवाने की सोच रहे हो
वह विचार त्याग दो
क्योंकि
नीम की छांव
पिता का साया बनकर
तुम्हारे साथ रहेगी

भित्तियाँ तुडवाकर
दीवारें बनवाना तो
समझ आता है
लेकिन
सपाट दीवारें
समझ से परे हैं
जिन पर टंगेगीं
मॉडर्न आर्ट
जिसे
अबूझ पहेली की तरह
समझा नहीं जा सकता
और
आदिवासी चेहरों की पेंटिंग
चीनी ड्रेगन
या
फेंगशुई की लटकी होंगी घंटियाँ

इस तरह
ड्राइंगरूम की आधुनिक शोभा
केवल लटकी रहती है
और
लटकना आत्महत्या का प्रतिरूप है

समय के साथ
बदलाव आवश्यक है
लेकिन
सबकुछ बदलकर
भूगोल तो मिट सकता है
पर
इतिहास नहीं
क्योंकि
इतिहास मस्तिष्क में होता है
इसलिए
एक सुझाव और दूँ
नये घर में
सपाट दीवारों के साथ
कोने में ही सही
एक आला रहने दो
जहां
दीपक की रोशनी बनकर
माँ हमेशा तुम्हारे साथ होगी।

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

नारी अंगों का प्रदर्शन

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तुम
चर्चित हो
कौन नहीं जानता तुम्हें
लोग जाते हैं देखने
तुम्हारी प्रदर्शिनी
जहां होता है केवल
नारी अंगों का प्रदर्शन
तुमने
जगतजननी नारी को निर्वस्त्र दिखाया है
उसके वास्तविक उभार और
परिपक्वता का
चरित्र हनन किया है
क्या यह
कोई अन्वेषण है तुम्हारा ?

अविकसित शरीर में
विकसित अंगों का
अशोभनीय प्रदर्शन
विवश करता है सोचने को
कि
क्या तुम्हें भी
एक नारी ने ही जन्म दिया है ?
मुझे तो लगता है 
तुमने
किसी नारी नहीं
अपितु अपनी
माँ, बहिन और
बेटी को ही
अपने हाथों निर्वस्त्र किया है

जिस स्त्री के स्तनों का
उभार तुमने दिखाया है
वह तुम्हारी माँ ही है
क्योंकि
स्तनों का उभार तो
तुमने अपने शिशुकाल में
माँ द्वारा कराए गए
स्तनपान के समय ही देखा था

यह भी समझ आ रहा है
कि
नारी के अविकसित अंगों की
समय से पहले परिपक्वता को दर्शाना
तुमने
अपने सामने बड़ी हो रही
बहिन को देखकर ही किया है

सच-सच बताओ ?
तुमने
अपनी माँ और बहिन का ही चित्रण किया है ना
बोलो !


अब इसके बाद
अपनी पत्नी और बेटी का भी
क्या ऐसा ही प्रदर्शन होगा ?
ये सामने की तस्वीर
जिसमें लड़की की नाभि और
लगभग पूरी खुली हुई टांगे
कंधों से उतरता बड़े गले का टॉप
यह सब तो
पश्चिमी सभ्यता की पक्षधर
तुम्हारी प्यारी बिटिया को ही तो पसंद है
बोलो !
क्यों चुप हो


पश्चाताप से झुका हुआ सिर
तुम्हारी स्तबधता और
बंधी हुई बत्तीसी देखकर
मैं समझ गया
कि
अब तुम कुछ नहीं बोलोगे
क्योंकि
जड़ हो गए हो।

रविवार, 18 नवंबर 2012

लंबा मौन

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लंबे समय तक
मौन
निश्चित विनाश का संकेत है
सौहार्दपूर्ण वातावरण
कभी भी
चढ‌ सकता है
आंतकियों के मस्तिष्क में
कट्टरपंथी
सेंक सकते हैं रोटियाँ
तुम्हारे-हमारे बीच
शांत इलाकों में
कभी भी
लग सकता है कर्फ्यू
केवल दो लोग
अनगिनत लाशों के
ठेकेदार हो सकते हैं
उन लाशों के
खुदा के बंदों को
बनाकर मोहरा
चलते हैं शकुनि चालें
और
हँसते हैं कुटिल हँसी
जेम्स वाट ने
रेल का इंजन बनाया
और
एडीसन ने
असफलता से
सफलता पाकर
बल्ब का आविष्कार किया
कट्टरपंथी मजहबी लोग भी तो
आविष्कार ही करते हैं
एक बम से
अधिक से अधिक
कितने लोग मर सकते हैं| 

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

सिल्वर अवार्ड प्राप्त

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दिनांक 30 सितम्बर 2012 को वाराणसी में आयोजित तेइसवें अखिल भारतीय Quality Circle Forum of India (QCFI) Convention के भव्य समारोह में "सिल्वर अवार्ड" लेते हुए दांये से तीसरे स्थान पर कवि सुधीर गुप्ता "चक्र"। 


 

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

अंधेरा

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अंधेरा
बंद सांकल को घूरता है
और
करता है प्रतीक्षा
आगंतुक की
द्वार भी
सहमे हुए से
चुपचाप
एक-दूसरे का सहारा बनकर खडे‌ हैं

सुनसान अंधेरे में
ध्वनि
तालाब में फेंकी
कंकडी के  घेरे सा
विस्तार ले गई
अनंत को ताकता
शून्य
चेहरे की सलवटें
कम करने की कोशिश में व्यस्त है

अंधेरे में पड‌ते
पदचाप
स्पष्ट गिने जा सकते हैं
सांकल का स्पर्श
और
बंद दरवाजों को धक्का देकर
आगे बढ़ते पदचाप
अंधेरे सूनेपन को
खत्म करने का
प्रयास कर चुके हैं

आधी रात को
इतने अंधेरे में
न जाने
कौन आया होगा
निश्चित ही
जानता होगा अंधेरा
प्रतीक्षा तो
उसने ही की है
अंधेरा
चालाक है
तिलिस्मी है
नहीं है कोई आकृति उसकी
फिर भी
टटोल-टटोलकर
बढ़ता है आगे
उस छोर की ओर
जिसका
कोई पता नहीं
क्योंकि
इसके विस्तार का क्या पता
और
वैसे भी
तय किए गए फासले से
दूरी का पता नहीं चलता
क्योंकि
अंधेरे को
स्पर्श ही नाप सकता है

शोषण करता हुआ अंधेरा
पराक्रमी होने का ढिंढोरा पीटता है
..... ? ? ? ?
अरे!
क्या हुआ?
क्यों सिकुड़ने लगे
जानता हूँ
नहीं स्वीकारोगे तुम अपनी हार
भोर जो होने वाली है।

दूसरों के लिए भी जीकर देखो

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एक छोटी कील को
भारी हथौडे से ठोककर
क्या साबित करना चाहते हो तुम?
शायद
अपनी ताकत
लेकिन
वहम् है तुम्हारा
क्योंकि
जब तक कील सीधी है
ठोक सकते हो
लेकिन
मुड‌ गई तो
क्या कर लोगो
कुछ नहीं
बस!
दीवार की मजबूती को कोसोगे
हथौडा पटकोगे
और
कील फेंक दोगे

ये क्या 
कील नहीं ठोक पाए तो
कैलेंडर फाड़कर फेंक दिया
दरवाजे की चटकनी से भी तो
लटका सकते थे
या फिर
चिपका सकते थे
किसी दीवार पर 

तुम्हारी खीझ ने
कमजोर साबित कर दिया है तुम्हें
दाँतों से दबे कमजोर होंठ
तुम्हारे चेहरे की सलवटें
और
मानसिक तनाव भी 
अब नहीं जोड़ सकते
कागज के टुकडों को
एक निहत्थी कील के प्रति
स्वीकारना ही होगी तुम्हें
अपनी हिटलरशाही की हार

टेबिल पर रखे कागज को
पेपरवेट से दबाते समय
तुम्हारे चेहरे की प्रतिक्रिया
और
कसी हुई बत्तीसी
साफ-साफ बता रही है
कि
तुम
पेपरवेट के नीचे रखे
कागज को दबाकर
स्वयं को संतुष्ट करने का
असफल प्रयास कर रहे हो
सोच रहे हो
मैंने अपनी ताकत
और
पेपरवेट के दबाव से
किसी को दबाकर
अपनी जीत हासिल की 
फिर भ्रमित हो गए हो तुम
क्योंकि
कागज तुमसे डरा नहीं है
बल्कि
तुम्हारी बेवकूफी पर हँस रहा है
और
कह रहा है
कितना दबाओगे मुझे
अपनी भाषा
और
अपना निर्णय
नहीं बदलूंगा मैं
तुम्हें बरखास्त होना ही पडे‌गा

सिगरेट सुलगा कर खुश हो
कि
मैंने किसी को जला दिया
और
जितना लम्बा कश लूंगा
उतनी ही तेज जलेगी सिगरेट
तुम
इस बार भी
अपनी नपुंसक सोच से पिछड़ गए हो
क्योंकि
तुम क्या जलाओगे उसे
जलना तो उसकी नियति है
न कि
तुम्हारी जीत का हिस्सा

अब अंधेरे पर तुम्हारा गुस्सा
भई वाह
कितना अंधेरा समेटोगे अपनी मुठ्ठी में
अंगुली की संधि से
बाहर आ ही जाएगा
तुम्हारे विचित्र प्रयोग
कमजोरियों को उजागर करते हैं
तुम्हारी
सहमी हुई संवेदनाएँ
और
औचित्यहीन अनुभव
बीच चौराहे पर खडें हैं
तुम
गेरूआ वस्त्र पहनकर
अपने संकीर्ण विचारों को बिना बदले
स्वामी  या
सन्यासी कहला सकते हो
तुम
अपने प्रति
चुम्बकीय आकर्षण भी
पैदा कर सकते हो
लेकिन
अपनी आत्मा का विश्वास नहीं जीत सकते

तुम्हारा
संभावित पागलपन
केवल तुम्हारी हार नहीं
बल्कि
नपुंसक हार है
ध्यान रखो
गलत काम
और
गलत शब्द
तुरंत प्रसूत होते हैं
इस तरह
कब तक बढाओगे शोषण की मात्रा
निकालना ही होगी तुम्हें
अपने स्वार्थों की शवयात्रा
इसलिए
भरी हुई मोरी (नाली) की तरह
रूके पानी के बाद
एकदम खुल जाओ
और
अचानक बहाव की तरह
अपनी हारी हुई
जीत को बहाकर
दूसरों की जीत में ही
अपनी जीत देखो
क्योंकि
महापुरूष कहते हैं
अपने लिए तो सभी जीते हैं
दूसरों के लिए भी जीकर देखो।