पिताजी
ओसारे के नीचे पडी
चारपाई पर लेटे ही लेटे
बकरी के छौने को देखकर तुम
बडे खुश होते हो
फिर
प्यार से गोद में उठाते हो
यही छौना
बकरी बनने के बाद
उसका वंश बढाएगा
फिर
पीढी दर पीढी
यही क्रम चलेगा
सोचकर
बहुत हर्षाते हो
लेकिन
मुझे जन्म से पहले ही
मारने की सोचते हो
अगर
जन्म ले भी लूँ तो
तुम्हारे चेहरे पर
क्यों आ जाती है उदासी
मैं
तुम्हारा न सही
माँ की तरह
किसी का तो वंश बढाऊंगी
फिर
छौने में और मुझमें
भेदभाव क्यों?
सोमवार, 17 अक्टूबर 2011
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