माँ और तुम्हारे बीच
क्या रिश्ता है
तुम्हें शायद पता नहीं
उसके आसुँओं में
तुम्हारा दर्द बहता है
तुम्हारी कराह
सीधे पहुँचती है
उसके ह्रदय तक
और
छाती में भर जाता है दर्द
तब तुम्हें
दुग्धपान भी नहीं करा सकती वह
क्योंकि
आँचल में दर्द जो भरा है
सृष्टि के रचियता ब्रह्मा
पालनहार विष्णु
और
प्रलयंकर शंकर से भी बड़ी
ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च पदासीन
माँ, से रिश्ते को
कैसे और कब समझोगे
पता नहीं
तुम
भूल भी जाओ उसे
लेकिन
तुम्हारे नेत्रों की भाषा से भी
तुम्हे पढ़ने में सक्षम है माँ
तुम्हारे कष्ट देखकर
हर पल रिसती रहती है वह
नल के नीचे रखी
छेद वाली बाल्टी में से
बहते हुए पानी की तरह
और
तुम उसके साथ
रहना ही नहीं चाहते
फिसल जाते हो
गीले हाथों से
ग्लिसरीन वाले पीयर्स साबुन की तरह
लेकिन
भूल गए हो तुम
पीयर्स साबुन की तरह ही
पारदर्शी है माँ का ह्रदय
सच कहूं तो
न्यायप्रिय माँ
केवल
तुम्हारे पक्ष में ही लेती है
कुछ गलत फैसले
और
बन जाती है अपराधी
अपराध तो उसने
तुम्हारे लिए ही किए हैं
माँ ने कभी भी
अपने लिए नहीं जिया है
और
तुम कहते हो
माँ क्या है
बस!
जन्म ही तो दिया है
ऐसा सोचकर
तुम उसके असतित्व को
नकार रहे हो
माँ की वाणी में साक्षात सरस्वती है
माँ के स्वर वैदिक मंत्र हैं
माँ के चरण चार धाम हैं
माँ सीधी-सादी कामधेनु है
जो वरदान चाहो मिल जाता है
अरे मूर्ख
रिश्ते की बुनियाद होती है गर्भ से
और
गर्भ से लेकर
बाहर आने तक
तेरे नौ माह का जीवन चक्र
उसके ही हाथों में होता है
भूल गया तू
सबसे पहला और सबसे बड़ा
गर्भनाल का रिश्ता
वह चाहती तो
मुक्त नहीं करती तुझे
बंधक बनाकर रखती
अपनी गर्भनाल से
लेकिन
सच तो यह है
कि
वह बड़ी दयालु है
वो तो तुझे
स्वयं निर्णय लेने के अधिकार
सौंप देना चाहती है
इसलिए
कर देती है मुक्त
मेरी मानो
तुम
पूरी सदी का दोष
अपने सिर पर न लो
वरना
अगली पीढी भटक जाएगी
और फिर
कोई भी माँ
अपने बच्चे को
गर्भनाल से अलग नहीं कर पाएगी।
1 टिप्पणियाँ:
आदरणीय सुधीर गुप्ता चक्र जी माँ की महिमा को चार चाँद लगा दिया आप ने सच में माँ का प्यार अनमोल है काश लोग सोचें समझें पूजें
शुक्ल भ्रमर ५
निम्न सुन्दर पंक्तियाँ
सच कहूं तो
न्यायप्रिय माँ
केवल
तुम्हारे पक्ष में ही लेती है
कुछ गलत फैसले
और
बन जाती है अपराधी
अपराध तो उसने
तुम्हारे लिए ही किए हैं
माँ ने कभी भी
अपने लिए नहीं जिया है
एक टिप्पणी भेजें