शनिवार, 31 दिसंबर 2011
नव वर्ष की बधाई
हैं बड़े विचित्र
एक जनवरी को हमसे बोले -
"चक्र" जी
नव वर्ष की बधाई !
हमने कहा
बड़े अजीब हो,
बिना सोचे समझे ही बधाई
आपको
देने मै ज़रा भी शर्म नहीं आयी ?
अरे,
नव वर्ष जब भी आता है
केवल
वर्ष ही तो नया रहता है
लेकिन
समस्याएँ पुरानी दोहराता है !
समस्याओं की श्रेणी में
प्रथम क्रमांक
रोटी का आता है
विश्वाश करो,
एक दिन तो ऐसा आएगा
जब
मोनो एक्टिंग करके
कोरी कल्पना से पेट भरना होगा,
तब
हम अपने बच्चों को बताएंगे
कि
रोटी एक इतिहास है
और
उसकी कहानियां सुनाएंगे !
यह सुनकर
हमारे बच्चे भी
रोटी के भूतकालीन अस्तित्व पर
विशवास नहीं कर पाएंगे !
मेरे भाई,
बधाई का क्या है -
नव वर्ष की
सिर्फ निष्ठा बदल जाती है
और
मौक़ा देखकर
उसकी भी नीयत बदल जाती है !
जिस दिन
महंगाई कम हो जाएगी
उस दिन मैं
घी के दिये जलाऊंगा
और
सच मानो
आपको नव वर्ष की बधाई देने अवश्य आऊँगा
सोमवार, 17 अक्टूबर 2011
राष्ट्रपिता
डाक टिकिट पर छ्पा हुआ
जब
डाकखाने से निकला
तो
सर्वप्रथम काला हुआ
लगता था पिटा हुआ
तत्पश्चात
मैं
यह सोचने पर मजबूर हुआ
क्या यही हैं
राष्ट्रपिता।
साथ
तुमने
मेरा नाम
नव वर्ष में
नया कैलेंडर
टांग दिया उसके ऊपर
और
इस तरह
तुमने
साथ मेरा छोड़ दिया।
हलचल
स्मृति
सामने बिठाकर
लिखने लगा हूँ
अब मैं
पहले से
बहुत अच्छी
और
सम्पूर्ण कविताएं
इस तरह
मानो
पुरानी कविताओं की
स्मृति हो आई हो।
पिता से बेटी का प्रश्न
ओसारे के नीचे पडी
चारपाई पर लेटे ही लेटे
बकरी के छौने को देखकर तुम
बडे खुश होते हो
फिर
प्यार से गोद में उठाते हो
यही छौना
बकरी बनने के बाद
उसका वंश बढाएगा
फिर
पीढी दर पीढी
यही क्रम चलेगा
सोचकर
बहुत हर्षाते हो
लेकिन
मुझे जन्म से पहले ही
मारने की सोचते हो
अगर
जन्म ले भी लूँ तो
तुम्हारे चेहरे पर
क्यों आ जाती है उदासी
मैं
तुम्हारा न सही
माँ की तरह
किसी का तो वंश बढाऊंगी
फिर
छौने में और मुझमें
भेदभाव क्यों?
बुधवार, 25 मई 2011
माँ से रिश्ता
माँ और तुम्हारे बीच
क्या रिश्ता है
तुम्हें शायद पता नहीं
उसके आसुँओं में
तुम्हारा दर्द बहता है
तुम्हारी कराह
सीधे पहुँचती है
उसके ह्रदय तक
और
छाती में भर जाता है दर्द
तब तुम्हें
दुग्धपान भी नहीं करा सकती वह
क्योंकि
आँचल में दर्द जो भरा है
सृष्टि के रचियता ब्रह्मा
पालनहार विष्णु
और
प्रलयंकर शंकर से भी बड़ी
ब्रह्माण्ड की सर्वोच्च पदासीन
माँ, से रिश्ते को
कैसे और कब समझोगे
पता नहीं
तुम
भूल भी जाओ उसे
लेकिन
तुम्हारे नेत्रों की भाषा से भी
तुम्हे पढ़ने में सक्षम है माँ
तुम्हारे कष्ट देखकर
हर पल रिसती रहती है वह
नल के नीचे रखी
छेद वाली बाल्टी में से
बहते हुए पानी की तरह
और
तुम उसके साथ
रहना ही नहीं चाहते
फिसल जाते हो
गीले हाथों से
ग्लिसरीन वाले पीयर्स साबुन की तरह
लेकिन
भूल गए हो तुम
पीयर्स साबुन की तरह ही
पारदर्शी है माँ का ह्रदय
सच कहूं तो
न्यायप्रिय माँ
केवल
तुम्हारे पक्ष में ही लेती है
कुछ गलत फैसले
और
बन जाती है अपराधी
अपराध तो उसने
तुम्हारे लिए ही किए हैं
माँ ने कभी भी
अपने लिए नहीं जिया है
और
तुम कहते हो
माँ क्या है
बस!
जन्म ही तो दिया है
ऐसा सोचकर
तुम उसके असतित्व को
नकार रहे हो
माँ की वाणी में साक्षात सरस्वती है
माँ के स्वर वैदिक मंत्र हैं
माँ के चरण चार धाम हैं
माँ सीधी-सादी कामधेनु है
जो वरदान चाहो मिल जाता है
अरे मूर्ख
रिश्ते की बुनियाद होती है गर्भ से
और
गर्भ से लेकर
बाहर आने तक
तेरे नौ माह का जीवन चक्र
उसके ही हाथों में होता है
भूल गया तू
सबसे पहला और सबसे बड़ा
गर्भनाल का रिश्ता
वह चाहती तो
मुक्त नहीं करती तुझे
बंधक बनाकर रखती
अपनी गर्भनाल से
लेकिन
सच तो यह है
कि
वह बड़ी दयालु है
वो तो तुझे
स्वयं निर्णय लेने के अधिकार
सौंप देना चाहती है
इसलिए
कर देती है मुक्त
मेरी मानो
तुम
पूरी सदी का दोष
अपने सिर पर न लो
वरना
अगली पीढी भटक जाएगी
और फिर
कोई भी माँ
अपने बच्चे को
गर्भनाल से अलग नहीं कर पाएगी।
सोमवार, 2 मई 2011
सच