हे
धार्मिक पथप्रदर्शक
बिना
संदेश दिए
बिना
कुछ कहे
उठकर, कहां चल दिए
कहीं
तुम
विश्राम
तो नहीं करना चाहते हो
या
सृष्टि
का अंत तो नहीं होने वाला
अथवा
महाप्रयाण
की इच्छा है
हे
मार्गदर्शी
तुम्हारे
साथ
संवाद, संबोधन और सामीप्य ने
हमें
अब
तक जीवित रखा
लेकिन
तुम्हारे
प्रस्थान से संभव है
हम
कल
की सुबह शायद न देख पाएं
इसलिए
तुम्हें
नमन।
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