दरवाजे
हर रोज
अनगिनत बार
चौखट से गले मिलते हैं
साक्षी हैं कब्जे
इस बात के
जो
सौगंध खा चुके हैं
दोनों को मिलाते रहने की
जंग लगने पर
कमजोर हो जाते हैं कब्जे
और
चर्र-चर्र ......
आवाज करते हुए
कराहते हैं दर्द से
फिर भी
निःस्वार्थ भाव से
दोनों को मिलाते रहने का क्रम
जारी रखते हैं
जलते हैं तो
गिट्टक और स्टॉपर
मिलन के अवरोधक बनकर
कहने को अपने हैं
सहयोग करती है
हवा
अपनी सामर्थ्य के अनुसार
ललकारती भी है
गिट्टक और स्टॉपर को
और
चौखट से दरवाजे का
मिलन हो न हो
जारी रखती है प्रयास
उससे भी महान है
चटकनी
जो
ढूँढती है मौका
दोनों के प्रणय मिलन का
और
खुद बंद होकर
घंटों मिला देती है दोनों को।
6 टिप्पणियाँ:
देहली सजनी से मिलन, करता कष्ट कपाट ।
लौह-हृदय कब्जे लगे, देते अन्तर पाट ।
देते अन्तर पाट , दुष्ट गिट्टक इ'स्टापर ।
खलनायक बन टांग, अड़ा देते नित-वासर ।
रविकर बड़ी महान, हमारी छोट सिटकिनी ।
है सुधीर आभार, मिलाती देहली सजनी ।।
pl vasit
FRIDAY
charchamanch.blogspot.com
नया दृष्टिकोण.... सादे, सहज और सर्वोपल्ब्ध वस्तुओं को प्रतीक बना कर बहुत प्यारी रोचक और अद्भुत रचना रची है आपने आदरणीय सुधीर भाई...
सादर बधाई/आभार।
अति सूक्ष्म अवलोकन .... अच्छी रचना
कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
वाह वाह वाह ...अरसे बाद इतनी अच्छी कविता पढ़ी..क्या बिम्ब हैं कमाल.
बहुत सुन्दर सहेली सिटकनीसी, भगवान् सबको मिले .नए प्रतीक मिलाये ,प्रेमी प्रेमिका हर्षाये ,सिटकनी मुस्काये ---मंडवे तले गरीब के दो फूल खिल रहे .....हे रात तू न जाना ,....
wah, kya kamaal ki rachna hai
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